खुद की खोज में निकल..!!!!!! खुद की खोज में निकल, तू क्यूँ हताश है। तू चल तेरे वज़ूद की, समय को भी तलाश है। जो तुझसे लिपटी बेड़ियाँ, समझ ना इसको वस्त्र तू। ये बेड़ियाँ निकाल के,बना ले इसको सस्त्र तू। चरित्र जब पवित्र है, तो क्यूँ है ये दशा तेरी। तू खुद की खोज में निकल, क्यूँ तू हताश है । तू चल तेरे वज़ूद की, समय को भी तलाश है । जला के भस्म कर उसे, जो क्रूरता का जाल है। तू आरती की लॉ नहीं, तू क्रोध की मशाल है। चूनर उड़ा कर ध्वज बना, गगन भी कांप जाएगा। अगर तेरी चुनरी गिरी, तो भूकंप आ जाएगा। तू खुद की खोज में निकल, क्यूँ तू हताश है तू चल तेरे वज़ूद की, समय को भी तलाश है । ©®Rajni Kumari