*एहसास मन और दिल का *

 एहसास मन और दिल का👇👇


हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है...


कोई कहता है 'मुश्किलों' से हार कर रास्ते बदलते देखा है,

फिर भी मैंने खुद को 'गिरकर' संभलते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है....


कोई कहता है कोई 'साथ' नहीं अब,

फिर भी मैंने 'परछाइयों' को खुद के साथ चलते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है....


कोई कहता है 'जिंदा दिली' नहीं ज़माने में,

फिर भी मैंने खुद को 'बर्फ' सा पिघलते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है.....


कोई कहता है सब कुछ मिलता नहीं 'जिंदगी' में,

फिर भी मैंने खुद को 'अरमाँ' के साथ चलते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है....


कोई कहता है 'रात' ढ़लने से पीछे नहीं हटते,

फिर भी मैंने मंजिल की तलाश में 'अँधेरों' से लड़ते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है.....


कोई कहता है बहुत मुश्किल है ये 'सफर' जिंदगी का,

फिर भी मैंने हालातों के साथ 'दर्द' सहते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है....


कोई कहता है जिंदगी में 'उतार - चढ़ाव' कितने है,

फिर भी मैंने खुद को 'विश्वास' के साथ चलते देखा है।

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है....

हाँ मैंने खुद को संभलते देखा है.... ।।


©® Rajni Kumari 

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